Tuesday, 30 November 2021

भारत पर अरबों का आक्रमण और कारण

  

भारत पर अरबों का आक्रमण 

632 ई. में हजरत मोहम्मद की मृत्यु के उपरांत, 6 वर्षो के अंदर ही उनके उत्तराधिकारियों ने सीरिया, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका, स्पेन और ईरान को जीत लिया। तत्कालीन समय में खलीफा राज्य फ्रांस से लेकर काबुल नदी तक फैल चुका था। अपने इन विजयों से उत्साहित होकर अरबों ने भारत की संपन्नता देख भारत पर आक्रमण किया। अरबियों ने जल-थल दोनों मार्गो से भारत (सिंध) पर आक्रमण किए किंतु 712 उन्हें कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली। 



सिंध पर आक्रमण के कारण :-

सिंध पर अरबों के आक्रमण के विषय में विद्वानों के मत हैं, कि :-

  • इराक का शासक अल हज्जाज भारत की संपन्नता के कारण उसे जीत कर स्वयं संपन्न बनना चाह रहा था।  
  • अरबों के कुछ जहाजों को सिंध के देवल बन्दरगाह पर समुद्री लुटेरों ने लूट लिया था, जिसके कारण खलीफा ने सिंध के राजा दाहिर से जुर्माने की मांग की किंतु दाहिर ने असमर्थता जताते हुए कहा कि उनका डाकुओं पर कोई नियंत्रण नहीं है। 

मोहम्मद बिन कासिम का आक्रमण :- 

उक्त कारणों से खलीफा ने अपने भतीजे व दामाद मोहम्मद बिन कासिम को 712 ई. में सिंध पर आक्रमण के लिए भेजा। 17 वर्ष की आयु में कासिम ने सिंध पर सफल अभियान किया। 


मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण (711 से 715) :-

देवल विजय:- एक बड़ी सेना लेकर मोहम्मद बिन कासिम 711 में देवल पर आक्रमण कर दिया। दाहिर ने अपनी अदूरदर्शिता का परिचय देते हुए देवल की रक्षा नहीं की और पश्चिमी किनारों को छोड़कर पूर्वी किनारों के बचाव में लग गया। दाहिर के भतीजे ने राजपूतों से मिलकर जिले की रक्षा का प्रयास किया किंतु असफल रहा। 

नेऊन विजय:- नेऊन पाकिस्तान में वर्तमान हैदराबाद के दक्षिण में स्थित इराक के समीप था। दाहिर ने नेऊन की रक्षा का दायित्व एक पुजारी को सौंप कर अपने बेटे जय सिंह को ब्राम्हणाबाद बुला लिया। नेऊन में बौद्धों की संख्या अधिक थी। उन्होंने मोहम्मद बिन कासिम का स्वागत किया। इस प्रकार बिना युद्ध किए ही मीर कासिम का नेऊन के दुर्ग पर अधिकार हो गया। 


सेहवान विजय:- इस समय सेहवान का शासक माझरा था। इसने बिना युद्ध के ही नगर छोड़ दिया और बिना किसी कठिनाई के सेहवान पर मोहम्मद बिन कासिम का अधिकार हो गया। 


सीसम के जाटों पर विजय:- मोहम्मद बिन कासिम सीसम के जाटों पर अपना अगला आक्रमण किया। माझर यहीं पर मारा गया। जाटों ने मोहम्मद बिन कासिम की अधीनता स्वीकार कर दी। 

राओर विजय:- राओर में दाहिर और मोहम्मद बिन कासिम के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में दाहिर मारा गया। दाहिर के बेटे जयसिंह ने राओर दुर्ग की रक्षा का दायित्व अपने विधवा मां पर छोड़कर ब्राह्मणबाद चला गया। दुर्गे की रक्षा करने में अपने आप को असफल पाकर दाहिर की विधवा पत्नी ने आत्मदाह कर लिया। 


ब्राह्मणवाद पर अधिकार:- ब्राह्मणवाद की सुरक्षा का दायित्व दाहिर के पुत्र जयसिंह के ऊपर था। उसने कासिम के आक्रमण का बहादुरी के साथ सामना किया। किंतु नगर के लोगों के विश्वासघात के कारण वह पराजित हो गया और ब्राह्मणवाद पर कासिम का अधिकार हो गया। कासिम ने यहां का कोष तथा दाहिर की दूसरी विधवा पत्नी के साथ उसकी दो पुत्रियों सूर्यदेवी तथा परमल देवी को अपने कब्जे में कर लिया। 

आलोर विजय:- ब्राह्मणवाद पर अधिकार के बाद कासिम आलोर पहुंचा। प्रारंभ में अलोर में निवासियों ने कासिम का सामना किया। किंतु अंत में आत्मसमर्पण कर दिया। 


मुल्तान विजय:- मुल्तान में आंतरिक कलह के कारण विश्वासघातियों ने कासिम की सहायता की। उन्होंने नगर के जल स्त्रोत की जानकारी कासिम को दे दी जहां से दुर्ग निवासियों को जल की आपूर्ति की जाती है। इससे दुर्ग के सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस नगर में मीर कासिम को इतना धन मिला कि उसने इस स्वर्णनगर नाम दिया। 


मोहम्मद बिन कासिम की वापसी:- 

मोहम्मद बिन कासिम ने देवल,नेऊन, सेहवान, सीसम, राओर, ब्राह्मणवाद, आलोर, मुल्तान आदि पर विजय के बाद भारत के अंतरिम भागों को जीतने के लिए सेनाएं भेजी। परंतु नागभट्ट (प्रतिहार), पुलकेसीन एवं यशोवर्मन (चालुक्य) ने इन्हे वापस खदेड़ दिया। इस प्रकार अरबों का शासन भारत के सिंध प्रांत तक सिमट कर रह गया। 




भारत की 22 राजभाषा

भारत की राजभाषा

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राजभाषा



राजभाषा किसे कहते हैं:-

किसी राज्य या देश की घोषित भाषा होती है, जो कि सभी राजकीय प्रयोजनों में प्रयोग होती है।

उदाहरणतः भारत की राजभाषा हिन्दी है।


भारतीय संविधान में राजभाषा:-

संविधान के भाग-17 के अनुच्छेद 343 से 351 के अंतर्गत राजभाषा और उससे सम्बंधित विषयों का उपबंध है।

संविधान में कुल 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। वे हैं:-

  1. असमिया 
  2. उड़िया 
  3. उर्दू 
  4. कन्नड़ 
  5. कश्मीरी 
  6. कोंकणी 
  7. गुजराती 
  8. डोगरी 
  9. तमिल 
  10. तेलुगू 
  11. नेपाली 
  12. पंजाबी 
  13. बांग्ला 
  14. बोडो 
  15. मणिपुरी 
  16. मराठी 
  17. मलयालम 
  18. मैथिली 
  19. संथाली 
  20. संस्कृत 
  21. सिंधी 
  22. हिंदी



हनुमान चालीसा का अर्थ

हनुमान चालीसा का अर्थ


हम सब हनुमान चालीसा पढते हैं, सब रटा रटाया।
क्या हमे चालीसा पढते समय पता भी होता है कि हम हनुमानजी से क्या कह रहे हैं या क्या मांग रहे हैं?
बस रटा रटाया बोलते जाते हैं। आनंद और फल शायद तभी मिलेगा जब हमें इसका मतलब भी पता हो।
तो आईये समझते है श्री हनुमान चालीसा ----"अर्थ सहित"!!


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श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

《अर्थ》→ गुरु महाराज के चरण.कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला हे।★
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।★

《अर्थ》→ हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन.करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।★
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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥1॥★

《अर्थ 》→ श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों,स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।★
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राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥★

《अर्थ》→ हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नही है।★
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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥★

《अर्थ》→ हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी, सहायक है।★
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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥★

《अर्थ》→ आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।★
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हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥5॥★

《अर्थ》→ आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।★
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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥★

《अर्थ 》→ हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।★
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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7॥★

《अर्थ 》→ आप प्रकान्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।★
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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8॥★

《अर्थ 》→ आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते है। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है।★
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥9॥★

《अर्थ》→ आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके.लंका को जलाया।★
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भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥★

《अर्थ 》→ आपने विकराल रुप धारण करके.राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।★
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लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥★

《अर्थ 》→ आपने संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।★
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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥★

《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।★
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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥13॥★

《अर्थ 》→ श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।★
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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥14॥★

《अर्थ》→श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।★
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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥15॥★

《अर्थ 》→ यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।★
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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥★

《अर्थ 》→ आपनें सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।★
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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥17॥★

《अर्थ 》→ आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।★
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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥★

《अर्थ 》→ जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है की उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।★
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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥★

《अर्थ 》→ आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नही है।★
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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥★

《अर्थ 》→ संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।★
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राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥21॥★

《अर्थ 》→ श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप.रखवाले है, जिसमे आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नही मिलता अर्थात आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।★
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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू.को डरना॥22॥★

《अर्थ 》→ जो भी आपकी शरण मे आते है, उस सभी को आन्नद प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक. है, तो फिर किसी का डर नही रहता।★
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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥23॥★

《अर्थ. 》→ आपके सिवाय आपके वेग को कोई नही रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते है।★
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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24॥★

《अर्थ 》→ जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नही फटक सकते।★
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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25॥★

《अर्थ 》→ वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है,और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥★

《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! विचार करने मे, कर्म करने मे और बोलने मे, जिनका ध्यान आपमे रहता है, उनको सब संकटो से आप छुड़ाते है।★
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सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥ 27॥★

《अर्थ 》→ तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज मे कर दिया।★
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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥★

《अर्थ 》→ जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन मे कोई सीमा नही होती।★
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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥★

《अर्थ 》→ चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग मे आपका यश फैला हुआ है, जगत मे आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।★
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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥★

《अर्थ 》→ हे श्री राम के दुलारे ! आप.सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।★
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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥३१॥★

《अर्थ 》→ आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।★
1.) अणिमा → जिससे साधक किसी को दिखाई नही पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ मे प्रवेश कर.जाता है।★
2.) महिमा → जिसमे योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।★
3.) गरिमा → जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।★
4.) लघिमा → जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।★
5.) प्राप्ति → जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।★
6.) प्राकाम्य → जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी मे समा सकता है, आकाश मे उड़ सकता है।★
7.) ईशित्व → जिससे सब पर शासन का सामर्थय हो जाता है।★
8.)वशित्व → जिससे दूसरो को वश मे किया जाता है।★
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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥★

《अर्थ 》→ आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।★
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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥★

《अर्थ 》→ आपका भजन करने से श्री राम.जी प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख दूर होते है।★
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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥★

《अर्थ 》→ अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।★
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और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥★

《अर्थ 》→ हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती।★
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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥★

《अर्थ 》→ हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।★
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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥★

《अर्थ 》→ हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।★
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जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥38॥★

《अर्थ 》→ जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा।★
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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥★

《अर्थ 》→ भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।★
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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥40॥★

《अर्थ 》→ हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।★
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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥★

《अर्थ 》→ हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।★
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ


सीता राम दुत हनुमान जी को समर्पित

जय जय श्री राम 

सल्तनत कालीन राजत्व का सिद्धान्त

 

सल्तनत कालीन राजत्व का सिद्धान्त

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  • तुर्क-अफगान शासकों द्वारा दिल्ली सल्तनत को इस्लामी राज्य की संज्ञा दी गई है। वे अपने साथ शासन की धार्मिक व्यवस्था भी लाये थे। इस शासन व्यवस्था में राजा को धार्मिक नेता माना जाता था। 
  • दिल्ली सल्तनत एक इस्लामिक राज्य था, जिसके  अभिजात वर्ग एवं उच्चतर प्रशासनिक पदों  क्रम इस्लाम धर्म के थे। 
  • सैद्धांतिक रूप से दिल्ली सल्तनत के सुलतानों ने भारत में इस्लाम कानून लागु करने एवं अपने अधिकार पत्र के दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम में परिवर्तित करने के प्रयास किये। 
  • सल्तनत काल के सभी शासक खलीफा के प्रति निष्ठावान थे, तथा स्वयं को खलीफा का प्रतिनिधि मान शासन करते थे (केवल अलाउद्दीन खिलजी और मुबारक शाह खिलजी को छोड़कर)।



जिन सुल्तानों ने राजत्व के सिद्धांत को अपने दृष्टि से व्याख्यायित किया और उसी पर अमल किया वे हैं:- 

            1) गयासुद्दीन बलबन, 

            2) अलाउद्दीन खिलजी और 

            3) मुबारकशाह खिलजी।



बलबन का राजत्व सिद्धांत:-

  • बलबन ने सुल्तान के पद को दैवीय कृपा का माना है।
  • बलबन का राजत्व का सिद्धांत निरंकुशता पर आधारित था।
  • बलबन ने शासक की दैवी उत्पत्ति को सिद्ध करने के लिए अपने दरबार में सिजदा और पैबोस की प्रथा आरम्भ की।
  • वह उच्च वर्ग और निम्न वर्ग में भेद करता था।
  • वह गैर तुर्की को कभी उच्च पद पर नहीं रखता था।
  • बलबन ने ईरानी त्यौहार "नौरोज" मनाने की प्रथा शुरू की।




अलाउद्दीन का राजत्व सिद्धांत:-

  • अलाउद्दीन एक सुन्नी मुसलमान था, उसे इस्लाम में पूर्ण विश्वास था। 
  • उसने राजत्व के लिए दैवीय शक्तियों तथा सद्गुणों का दावा किया। 
  • वह राजा को देश के कानून से ऊपर मानता था। 
  • अपने शासनकाल में अलाउद्दीन ने पहले शमशीर (अभिजात वर्ग) तथा अहले कलम (उलेमा वर्ग) के प्रशासनिक प्रभाव को कम किया।
  • उसने शासक के पद को स्वेछाचारी तथा निरंकुश बनाया तथा स्वयं यामिन-उल-खिलाफत तथा नासिरी-अमीर-उल-मौमनीन की उपाधि धारण की। 
  • उसने अपने शासन की स्वीकृति के लिए खलीफा की मंजूरी को आवश्यक नहीं समझा। 



एक सच्चाई, जो बताई नहीं जाती

  

एक सच्चाई, जो बताई नहीं जाती



अकबर प्रतिवर्ष दिल्ली में नौरोज़ का मेला आयोजित करवाता था....!


इसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था....!


अकबर इस मेले में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती....उसे दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी....!


एक दिन नौरोज़ के मेले में महाराणा प्रताप सिंह की भतीजी, छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री मेले की सजावट देखने के लिए आई....!


जिनका नाम बाईसा किरणदेवी था....!

जिनका विवाह बीकानेर के पृथ्वीराज जी से हुआ था!


बाईसा किरणदेवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर क़ाबू नहीं रख पाया....और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से ज़नाना महल में बुला लिया....!


जैसे ही अकबर ने बाईसा किरणदेवी को स्पर्श करने की कोशिश की....


किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को ऩीचे पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी....!

और कहा नींच....नराधम, तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूँ....

जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है....!


बोल तेरी आख़िरी इच्छा क्या है....?


अकबर का ख़ून सूख गया....!


कभी सोचा नहीं होगा कि सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा....!


अकबर बोला: मुझसे पहचानने में भूल हो गई....मुझे माफ़ कर दो देवी....!


इस पर किरण देवी ने कहा: आज के बाद दिल्ली में नौरोज़ का मेला नहीं लगेगा....!


और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा....!


अकबर ने हाथ जोड़कर कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा....!


उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा....!


इस घटना का वर्णन 

गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है।


बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है!


 किरण सिंहणी सी चढ़ी

उर पर खींच कटार..!

भीख मांगता प्राण की

अकबर हाथ पसार....!!


अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।


इस तरह की‌ पोस्ट को शेअर जरूर करें और अपने महान धर्म की गौरवशाली वीरांगनाओं की कहानी को हर एक भारतीय को  जरूर सुनायें, जिससे वो हमारे गौरवशाली भारत के महान सपूत और वीरांगना को जान सकें, और उन पर अभिमान कर सके !

🙏🏻🙏🏻 🙏🏻🙏🏻

Saturday, 27 November 2021

क्रिप्टोक्यूरेंसी

क्रिप्टोक्यूरेंसी (Cryptocurrency)


क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिसकी सबसे बड़ी वजह है कि, इसमें शेयर बाजार के विपरीत तेजी से उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। ऐसे में बहुत से लोगों ने क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके बड़ा लाभ कमाया है। वहीं जिन लोगों ने अभी तक इसमें कभी निवेश नहीं किया है। अब वह भी बिटकॉइन, डॉगकोइन और एथेरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करना चाहते हैं। आपको बता दें क्रिप्टोकरेंसी की शुरुआत हुए अभी केवल 10 साल ही पूरे हुए है। लेकिन इसके बावजूद इसमें लोगों की रूचि दिन दूनी रात चौगनी बढ़ रही है। ऐसे में अगर आप भी क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने की सोच रहे हैं। तो आपको इस खबर को पूरा पढ़ना चाहिए। क्योंकि इसके बिना आपको तकड़ा नुकसान हो सकता है।

क्या है क्रिप्टोक्यूरेंसी ?

क्रिप्टोक्यूरेंसी एक डिजिटल या आभासी मुद्रा है जिसे क्रिप्टोग्राफी द्वारा सुरक्षित किया जाता है, जिससे नकली या दोहरा खर्च करना लगभग असंभव हो जाता है। 

क्रिप्टोकरेंसी डिजिटल संपत्ति हैं- जिनका उपयोग आप निवेश के रूप में और यहां तक ​​कि ऑनलाइन खरीदारी के लिए भी कर सकते हैं। यह क्रिप्टोग्राफी द्वारा सुरक्षित है, जिससे नकली या दोहरा खर्च करना लगभग असंभव हो जाता है। लेकिन यहां पर ये ध्यान देने वाली बात है कि, क्रिप्टोकरेंसी भौतिक रूप से मौजूद नहीं है, जिसका अर्थ है कि आप एक बिटकॉइन नहीं उठा सकते हैं और इसे अपने हाथ में पकड़ सकते हैं। और भारतीय रुपये के विपरीत, कोई केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है जो क्रिप्टोकरेंसी के मूल्य को बनाए रखता है।

क्रिप्टोकरेंसी की एक परिभाषित विशेषता यह है कि वे आम तौर पर किसी भी केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा जारी नहीं की जाती हैं, जो उन्हें सैद्धांतिक रूप से सरकारी हस्तक्षेप या हेरफेर से प्रतिरक्षा प्रदान करती हैं।

इसके अलावा, क्रिप्टोक्यूरेंसी के प्रत्येक सिक्के में प्रोग्राम या कोड की एक अनूठी लाइन होती है। इसका मतलब है कि इसे कॉपी नहीं किया जा सकता है, जिससे उन्हें ट्रैक करना और पहचानना आसान हो जाता है।



यह कैसे काम करती है?
क्रिप्टोकरेंसी को सरकार जैसे केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा समर्थित नहीं किया जाता है। इसके बजाय, ये कंप्यूटर की एक श्रृंखला में चलते हैं। यह बिना किसी बिचौलिए के वेब पर पीयर-टू-पीयर से एक्सचेंज किया जाता है। क्रिप्टोकरेंसी का विकेंद्रीकरण किया जाता है – जिसका मतलब है कि कोई भी सरकार या बैंक यह प्रबंधित नहीं करता है कि वे कैसे बने हैं, उनका मूल्य क्या है, या उनका आदान-प्रदान कैसे किया जाएगा। सभी क्रिप्टो लेनदेन क्रिप्टोग्राफी द्वारा सुरक्षित हैं – जिसका अर्थ है कि यह केवल बेचने वाले और खरीदने वाले को इसकी सामग्री देखने की अनुमति होती है।


आप क्रिप्टोकरेंसी को कैसे स्टोर कर सकते हैं?
क्रिप्टोकरेंसी को ऑनलाइन ‘वॉलेट’ में स्टोर किया जा सकता है, जिसे आपकी ‘private key’ के यूज से एक्सेस किया जा सकता है। अगर इसे समझा जाए तो एक सुपर-सुरक्षित पासवर्ड के बिना क्रिप्टो को एक्सचेंज नहीं किया जा सकता।

किस प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी मौजूद है?
बिटकॉइन सबसे अधिक कारोबार वाली क्रिप्टोकरेंसी है जिसके बारे में हर कोई जानता है और बात करता है, लेकिन यह एकमात्र तरह की क्रिप्टोकरेंसी नहीं है। लिटकोइन, पोलकाडॉट, चेनलिंक, मूनकॉइन, शिबा इनु, डॉगकॉइन आदि भी क्रिप्टोकरेंसी मौजूद हैं। कॉइनमार्केट कैप के अनुसार, वर्तमान में 6,000 से अधिक क्रिप्टोकरेंसी मौजूद हैं।

क्रिप्टो कैसे खरीदें और बेचें?
इस सवाल का जवाब भी अब आसान हो गया है। बढ़ती लोकप्रियता के चलते अब बाजार में ढेरो क्रिप्टो एक्सचेंज प्लेटफॉर्म्स हैं। ऐसे में देश में Bitcoin और Dogecoin जैसी क्रिप्टोकरेंसी को खरीदना और बेचना काफी आसान है। पॉपुलर प्लेटफॉर्म्स में WazirX, Zebpay, Coinswitch Kuber और CoinDCX GO के नाम शामिल हैं। इन्वेस्टर्स Coinbase और Binance जैसे इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म्स से Bitcoin, Dogecoin और Ethereum जैसी दूसरी क्रिप्टोकरेंसी भी खरीद सकते हैं।

सबसे खास बात यह है कि खरीदारी के ये सभी प्लेटफॉर्म चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। क्रिप्टोकरेंसी को खरीदने और बेचने की प्रक्रिया भी काफी आसान है। आपको केवल इन प्लेटफॉर्म्स पर साइन अप करना होगा। इसके बाद अपना KYC प्रोसेस पूरा कर वॉलेट में मनी ट्रांसफर करना होगा। इसके बाद आप खरीदारी कर पाएंगे।


क्रिप्टोकरेंसी पर सरकार का रूख क्या है?

फिलहाल, भारत में क्रिप्टोकरेंसी को कवर करने वाली कोई कानून नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि क्रिप्टोकरेंसी का मालिक होना अवैध है। इस बीच, भारत को अभी तक आधिकारिक डिजिटल मुद्रा विधेयक, 2021 के क्रिप्टोक्यूरेंसी और विनियमन को प्रस्तुत करना बाकी है, जो “आधिकारिक डिजिटल मुद्रा” के शुभारंभ के लिए नियामक ढांचा तैयार करेगा, इसे संसद के बजट सत्र में पेश किया जाना था, लेकिन हितधारकों के साथ चर्चा के चलते इसे टाल दिया गया। आपको बता दें अब तक, केवल कुछ देशों ने क्रिप्टोकरेंसी को कानूनी तौर पर स्वीकार किया है और यह सूची काफी छोटी है।




क्रिप्टोकरेंसी को समझे 

क्रिप्टोकरेंसी ऐसी प्रणालियाँ हैं जो ऑनलाइन सुरक्षित भुगतान की अनुमति देती हैं, जिन्हें वर्चुअल "टोकन" के रूप में दर्शाया जाता है, जो सिस्टम में आंतरिक लेज़र प्रविष्टियों द्वारा दर्शाए जाते हैं। "क्रिप्टो" विभिन्न एन्क्रिप्शन एल्गोरिदम और क्रिप्टोग्राफ़िक तकनीकों को संदर्भित करता है जो इन प्रविष्टियों की सुरक्षा करता है, जैसे अण्डाकार वक्र एन्क्रिप्शन, सार्वजनिक-निजी कुंजी जोड़े, और हैशिंग फ़ंक्शन


क्रिप्टोक्यूरेंसी के प्रकार:-

पहली ब्लॉकचेन-आधारित क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन थी, जो अभी भी सबसे लोकप्रिय और सबसे मूल्यवान बनी हुई है। आज, विभिन्न कार्यों और विशिष्टताओं के साथ हजारों वैकल्पिक क्रिप्टोकरेंसी हैं। इनमें से कुछ बिटकॉइन के क्लोन या कांटे हैं, जबकि अन्य नई मुद्राएं हैं जिन्हें खरोंच से बनाया गया था।

बिटकॉइन को 2009 में एक व्यक्ति या समूह द्वारा लॉन्च किया गया था जिसे छद्म नाम "सातोशी नाकामोटो" के नाम से जाना जाता है। 1 नवंबर 2021 तक, लगभग 1.2 ट्रिलियन डॉलर के कुल मार्केट कैप के साथ 18.8 मिलियन से अधिक बिटकॉइन प्रचलन में थे, जिसमें यह आंकड़ा बार-बार अपडेट होता था। मुद्रास्फीति और हेरफेर दोनों को रोकने के लिए केवल 21 मिलियन बिटकॉइन मौजूद रहेंगे।

बिटकॉइन की सफलता से उत्पन्न कुछ प्रतिस्पर्धी क्रिप्टोकरेंसी, जिन्हें "ऑल्टकॉइन" के रूप में जाना जाता है, में सोलाना, लिटकोइन, एथेरियम, कार्डानो और ईओएस शामिल हैं। नवंबर 2021 तक, मौजूद सभी क्रिप्टोकरेंसी का कुल मूल्य 2.4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है—बिटकॉइन वर्तमान में कुल मूल्य का लगभग 42% है।


क्रिप्टोक्यूरेंसी के लाभ और हानि 

लाभ:-

किसी बैंक या क्रेडिट कार्ड कंपनी जैसे किसी विश्वसनीय तृतीय पक्ष की आवश्यकता के बिना, क्रिप्टोकरेंसी दो पक्षों के बीच सीधे फंड ट्रांसफर करना आसान बनाने का वादा रखती है। इसके बजाय इन हस्तांतरणों को सार्वजनिक कुंजी और निजी कुंजी और विभिन्न प्रकार की प्रोत्साहन प्रणाली, जैसे कार्य का प्रमाण या हिस्सेदारी का प्रमाण के उपयोग द्वारा सुरक्षित किया जाता है।6


आधुनिक क्रिप्टोक्यूरेंसी सिस्टम में, उपयोगकर्ता के "वॉलेट," या खाते के पते में एक सार्वजनिक कुंजी होती है, जबकि निजी कुंजी केवल स्वामी के लिए जानी जाती है और लेनदेन पर हस्ताक्षर करने के लिए उपयोग की जाती है। फंड ट्रांसफर न्यूनतम प्रोसेसिंग फीस के साथ पूरा किया जाता है, जिससे उपयोगकर्ता वायर ट्रांसफर के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा लगाए जाने वाले भारी शुल्क से बच सकते हैं।


हानि :-

क्रिप्टोक्यूरेंसी लेनदेन की अर्ध-अनाम प्रकृति उन्हें कई अवैध गतिविधियों, जैसे कि मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी के लिए अच्छी तरह से अनुकूल बनाती है। हालांकि, क्रिप्टोक्यूरेंसी अधिवक्ता अक्सर अपनी गुमनामी को अत्यधिक महत्व देते हैं, गोपनीयता के लाभों का हवाला देते हुए जैसे कि व्हिसलब्लोअर या दमनकारी सरकारों के तहत रहने वाले कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षा। कुछ क्रिप्टोकरेंसी दूसरों की तुलना में अधिक निजी हैं।


उदाहरण के लिए, बिटकॉइन अवैध व्यापार ऑनलाइन करने के लिए एक अपेक्षाकृत खराब विकल्प है, क्योंकि बिटकॉइन ब्लॉकचैन के फोरेंसिक विश्लेषण ने अधिकारियों को अपराधियों को गिरफ्तार करने और मुकदमा चलाने में मदद की है। हालांकि, अधिक गोपनीयता-उन्मुख सिक्के मौजूद हैं, जैसे डैश, मोनेरो, या ZCash, जिसे ट्रेस करना कहीं अधिक कठिन है।


क्रिप्टोक्यूरेंसी की आलोचना:-

चूंकि क्रिप्टोकाउंक्शंस के लिए बाजार मूल्य आपूर्ति और मांग पर आधारित होते हैं, जिस दर पर किसी अन्य मुद्रा के लिए एक क्रिप्टोकुरेंसी का आदान-प्रदान किया जा सकता है, व्यापक रूप से उतार-चढ़ाव हो सकता है, क्योंकि कई क्रिप्टोक्यूच्युड्स का डिज़ाइन उच्च स्तर की कमी सुनिश्चित करता है।


बिटकॉइन ने कुछ तेजी से उछाल और मूल्य में गिरावट का अनुभव किया है, दिसंबर 2017 में $ 17,738 प्रति बिटकॉइन के उच्च स्तर पर चढ़ने से पहले अगले महीनों में $ 7,575 तक गिर गया। इस प्रकार कुछ अर्थशास्त्रियों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी को एक अल्पकालिक सनक या सट्टा बुलबुला माना जाता है।


इस बात की चिंता है कि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी किसी भी भौतिक सामान में निहित नहीं है। हालांकि, कुछ शोधों ने यह पहचाना है कि बिटकॉइन के उत्पादन की लागत, जिसके लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, सीधे इसके बाजार मूल्य से संबंधित है।


क्रिप्टोक्यूरेंसी ब्लॉकचेन अत्यधिक सुरक्षित हो सकते हैं, लेकिन क्रिप्टोक्यूरेंसी पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य पहलू, जिसमें एक्सचेंज और वॉलेट शामिल हैं, हैकिंग के खतरे से सुरक्षित नहीं हैं। बिटकॉइन के 10 साल के इतिहास में, कई ऑनलाइन एक्सचेंज हैकिंग और चोरी का विषय रहे हैं, कभी-कभी लाखों डॉलर मूल्य के "सिक्के" चोरी हो जाते हैं।10


फिर भी, कई पर्यवेक्षकों को क्रिप्टोकरेंसी में संभावित लाभ दिखाई देते हैं, जैसे कि मुद्रास्फीति के खिलाफ मूल्य को संरक्षित करने की संभावना और विनिमय की सुविधा के साथ-साथ कीमती धातुओं की तुलना में परिवहन और विभाजित करना आसान है और केंद्रीय बैंकों और सरकारों के प्रभाव से बाहर है।


सरल शब्दों में क्रिप्टोक्यूरेंसी क्या है?

क्रिप्टोकरेंसी ऐसी प्रणालियाँ हैं जो ऑनलाइन सुरक्षित भुगतान की अनुमति देती हैं जिन्हें आभासी "टोकन" के रूप में दर्शाया जाता है।


आप क्रिप्टोक्यूरेंसी कैसे प्राप्त करते हैं?

कोई भी निवेशक क्रिप्टो एक्सचेंज जैसे कॉइनबेस, कैश ऐप और बहुत कुछ के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी खरीद सकता है।


क्रिप्टोक्यूरेंसी का बिंदु क्या है?

कई विशेषज्ञ ब्लॉकचेन तकनीक को ऑनलाइन वोटिंग और क्राउडफंडिंग जैसे उपयोगों के लिए गंभीर क्षमता के रूप में देखते हैं, और प्रमुख वित्तीय संस्थान जैसे जेपी मॉर्गन चेस (जेपीएम) भुगतान प्रसंस्करण को सुव्यवस्थित करके लेनदेन लागत को कम करने की क्षमता देखते हैं।


क्रिप्टोक्यूरेंसी पैसे कैसे कमाती है?

क्रिप्टोकरेंसी ऑनलाइन सुरक्षित भुगतान की अनुमति देती है जो कि वर्चुअल "टोकन" के रूप में मूल्यवर्गित होते हैं, जो सिस्टम में आंतरिक लेज़र प्रविष्टियों द्वारा दर्शाए जाते हैं। निवेशक बिटकॉइन का खनन करके, या केवल अपने बिटकॉइन को लाभ पर बेचकर क्रिप्टोकुरेंसी के साथ पैसा कमा सकते हैं।


सबसे लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी क्या हैं?

बिटकॉइन अब तक की सबसे लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी है, इसके बाद एथेरियम, बिनेंस कॉइन, सोलाना और कार्डानो जैसी अन्य क्रिप्टोकरेंसी हैं।


क्रिप्टोकाउंक्शंस और अन्य प्रारंभिक सिक्का प्रसाद ("आईसीओ") में निवेश करना अत्यधिक जोखिम भरा और सट्टा है, और यह लेख इन्वेस्टोपेडिया या लेखक द्वारा क्रिप्टोक्यूचुअल्स या अन्य आईसीओ में निवेश करने की सिफारिश नहीं है। चूंकि प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति अद्वितीय होती है, इसलिए कोई भी वित्तीय निर्णय लेने से पहले एक योग्य पेशेवर से हमेशा सलाह लेनी चाहिए। इन्वेस्टोपेडिया यहां निहित जानकारी की सटीकता या समयबद्धता के बारे में कोई प्रतिनिधित्व या वारंटी नहीं देता है।

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गुप्तकालीन सामाजिक स्थिति

  

गुप्तकालीन
सामाजिक स्थिति

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गुप्तकालीन-सामाजिक-स्थिति


गुप्त काल में ब्राह्मण और क्षत्रिय को संयुक्त रूप से द्विज कहा गया है।

गुप्तकालीन समाज परम्परागत 4 जातियों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में विभाजित था। 

पहले की तरह ब्राह्मणों को इस समय भी समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।

गुप्त काल में इन वर्णों के अलावा अन्य जातियों का भी उल्लेख मिलता है जैसे मूर्ध्दावषिक्त, अम्बष्ठ, पारशव, उग्र एवं करण। 


अम्बष्ठ:- ब्राह्मण पुरुष एवं वैश्य स्त्री से उत्पन्न संतान अम्बष्ठ कहे गए। विष्णु पुराण में इन्हें नदी तट पर निवासी माना गया है मनु ने इन्हें का मुख्य व्यवसाय चिकित्सा बताया है। 

पारशव:- इस जाति की उत्पत्ति ब्राह्मण पुरुष एवं शूद्र स्त्री से हुई। इन्हें निषाद भी कहा जाता है पुराणों में इनके विषय में जानकारी मिलती है 

उग्र:- गौतम के अनुसार वैश्य पुरुष एवं शुद्ध स्त्री से उत्पन्न जाति उग्र कहलाई। पर स्मृतियों का मानना है कि इस जाति की उत्पति क्षत्रीय पुरुष एवं शूद्र जाति की स्त्री से हुई हैं। इनका मुख्य कार्य था बिल के अंदर से जानवरों को बाहर निकाल कर जीवन यापन करना है। 

फाह्यान ने गुप्तकालीन समाज में अस्पृश्यत (अछूत) जाति के होने की बात कही है। स्मृतियोंओं में इन्हें अंतज्य कहा गया है। पाणिनी ने इनका उल्लेख निरवसित शुद्र के रूप में किया है। 

संभवतः इस जाति के उत्पति शूद्र पुरुष एवं ब्राह्मण स्त्री से हुई है। 

यह जाति बस्ती के बाहर निवास करते थी इनका मुख्य कार्य शिकार करना एवं श्मशान घाट की रखवाली करना था। 

गुप्त काल में लेखकीय, गणना, आय का हिसाब रखने वाले आदि कार्यो को करने वाले वर्ग को कायस्थ कहा गया है।


 

व्हेनसांग अनुसार:- 

क्षत्रिय राजा की जाति थी। 


फाह्यान के अनुसार:- 

फाह्यान ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था की खूब प्रशंसा की है और बताया कि यहाँ के लोग बहुत दयालु एवं धर्मनिष्ट प्रवृत्ति के हैं। 

गुप्तकालीन समाज में अस्पृश्यत (अछूत) जाति के होने की बात कही है। स्मृतियोंओं में इन्हें अंतज्य कहा गया है। पाणिनी ने इनका उल्लेख निरवसित शुद्र के रूप में किया है।



खान-पान:-

कुछ गुप्तकालीन ग्रंथों में ब्राह्मणों को निर्देशित किया गया कि वे शूद्रों द्वारा दिए गए अन्न को ग्रहण न करें। 

जबकि बृहस्पति ने संकट के क्षणों में ब्राह्मण द्वारा शूद्र एवं दासों से अन्न ग्रहण करने की आज्ञा दी है। 

फाह्यान के अनुसार :- जनता साधारणतः शाकाहारी हैं और मांस का सेवन केवल चाण्डाल करते हैं। 

व्यवसाय :-

गुप्त काल के पूर्व ब्राह्मणों के केवल छह कार्य अध्ययन, अध्यापन, पूजा-पाठ, यज्ञ कराना ,दान देना, और दान लेना माना जाता था।

लेकिन गुप्तकाल में ब्राह्मणों ने अन्य जातियों के व्यवसाय को अपनाना आरंभ कर दिया था। 

मृच्छकटिकम् के उल्लेख से यह प्रमाणित होता है कि चारुदत्त नामक ब्राह्मण वाणिज्य का कार्य करता था। उसे ब्राह्मण का आपधर्म कहा गया है। 

इसके अतिरिक्त कुछ ब्राह्मण राजवंश जैसे वकाटक एवं कदंब का उल्लेख मिलता है।  

ब्राह्मणों के अतिरिक्त कुछ वैश्य शासक जैसे हर एवं सौराष्ट्र, अवंती, मालवा के शूद्र शासकों के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है। 

चंद्रगुप्त के इंदौर अभिलेख से कुछ क्षत्रियों द्वारा वैश्य का कार्य करने का उल्लेख है।

कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में तथा वराह मिहिर ने बृहद संहिता में चारों वर्णों के लिए अलग-अलग बस्तियों का विधान किया है। न्याय संहिता में यह उल्लेख मिलता है कि ब्राह्मण की परीक्षा तुला से, क्षत्रिय की अग्नि, से वैश्य की जल से तथा शूद्र की विषय से की जानी चाहिए।

इस काल में शूद्रों द्वारा सैनिक वृत्ति अपनाने के प्रमाण मिलते हैं। 

याज्ञवल्क्य ने शूद्रों के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण अपनाते हुए इन्हें व्यापारी कारीगर एवं कृषक होने की अनुमति प्रदान की विवरण एवं 

नरसिंह पुराण के उल्लेख से यह संकेत मिलता है कि शूद्रों ने कृषि कार्य को अपना लिया था। 


गुप्त कालीन न्याय-व्यवस्था और सैन्य व्यवस्था

दास प्रथा का प्रचलन:-



गुप्त काल में दास प्रथा का भी प्रचलन था। नारद ने आठ प्रकार के दासों का उल्लेख किया है।  इनमें प्रमुख थे:- 

    1. प्राप्त किया हुआ दास (उपहार आदि से) 
    2. स्वामी द्वारा प्रदत्त
    3. ऋण का चुकता ना कर पाने के कारण बना दास 
    4. दांव पर लगाकर हारा हुआ दास (पासे आदि खेलों)
    5. स्वयं से दासत्व ग्रहण स्वीकार करने वाला दास 
    6. एक निश्चित समय के लिए अपने को दास बनाना 
    7. दासी के प्रेम जाल में फस कर बनने वाला दास 
    8. आत्म विक्रय (स्वयं को बेचकर) 


मनु ने सात प्रकार के दासों का उल्लेख किया है। 

दासियों के बारे में भी जानकारी मिलती है।  

अमरकोश में दासीसमग्र का वर्णन आया है। 

इस समय दासों को उत्पादन कार्यों से अलग रखा गया, जबकि मौर्य के समय दास उत्पादन कार्य में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। 

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि दासो की स्थिति गुप्तों के समय ठीक नहीं थी। 


गुप्त कालीन व्यापार एवं वाणिज्य

स्त्रियों की स्थिति:-

गुप्तकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति के विषय में इतिहासकार और रोमिला थापर ने लिखा है कि साहित्य और कला में तो नारी का आदर्श रूप लगता है पर व्यवहारिक दृष्टि से देखने पर समाज में उनका स्थान गौण था। 

पुरुष प्रधान समाज में पत्नी को व्यक्तिगत संपत्ति समझा जाता था। 

पति के मरने पर पत्नी को सती होने के लिए प्रेरित किया जाता था। 

उत्तर भारत की कुछ सैनिक जातियों के परिवारों को बड़े पैमाने पर सती होने की प्रथा का प्रचलन था। 

प्रथम सती होने का प्रमाण 510 ईसवी के भानुगुप्त के एरण अभिलेख से मिलता है, जिसमें किसी को गोपराज (सेनापति) की मृत्यु पर उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख है। 

गुप्त काल में कन्याओं का विवाह अल्पायु 13 या 14 वर्ष में कर दिया जाता था। 

गुप्त काल में पर्दा प्रथा का प्रचलन केवल उच्च जातियों की स्त्रियों में था। 

गुप्तकालीन समाज में वैश्याओं के अस्तित्व के भी प्रमाण मिलते हैं पर इनके वृत्ति की निंदा की गई है। 

गुप्त काल में वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों को गणिका कहा जाता था। 

गुप्त काल में स्त्री धन का दायरा बढ़ा। कात्यायन ने स्त्री को अचल संपत्ति के स्वामी मारा है। 

गुप्त काल में पुत्र के अभाव में पुरुष की संपत्ति पर उसकी पत्नी का प्रथम अधिकार होता था।  

स्त्रियों के स्त्रीधन पर प्रथम अधिकार उनकी पुत्रियों का होता था।  

इस समय उच्च वर्ग की कुछ स्त्रियों के विदुषी एवं कलाकार होने का उल्लेख मिलता है। 

अभिज्ञान शाकुंतलम में अनुसूया को इतिहास का ज्ञाता बताया गया है। 

मालती माधव में मालती को चित्रकला में निपुण बताया गया है। 

अमरकोश में स्त्री शिक्षा के लिए आचार्यी, उपाध्यायीय, उपाध्याय शब्दों का प्रयोग किया गया है।

गुप्त काल के सिक्कों पर स्त्रियों जैसे कुमार देवी तथा लक्ष्मी के चित्र उच्च वर्ग के स्त्रियों के सम्मान सूचक है। 

पर्दा प्रथा का प्रचलन था, बाल विवाह एवं विवाह की प्रथा व्यापक हो गई थी। 

मेघदूत में उज्जैन के महाकाल मंदिर में कार्यरत देवदासियों का वर्णन मिलता है। 

मनु के अनुसार जिस स्त्री को पति ने छोड़ दिया हो या जो स्त्री विधवा हो गई हो यदि वह अपनी इच्छा से दूसरा विवाह करें तो वह पुनौर्भू तथा उसकी संतान को पुनौर्भव कहा जाता था। 


गुप्त कालीन राजस्व के स्त्रोत

गुप्तकालीन धार्मिक स्थिति

  

गुप्तकालीन धार्मिक स्थिति



गुप्तों का समय ब्राह्मण धर्म एवं हिंदू धर्म के पुनरुत्थान का समय माना जाता है। यह काल एक नया दर्शन लेकर उपास्थित हुआ। तत्कालीन महत्वपूर्ण संप्रदाय के रूप में वैष्णव एवं शैव संप्रदाय प्रचलन में आया। 

हिंदू धर्म में विकास यात्रा के इस चरण में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देतें हैं, जैसे:- मूर्ति पूजा हिंदू धर्म का सामान्य लक्षण हो गया, यज्ञ का स्थान उपासना ने ले लिया। 

गुप्त काल में ही वैष्णव एवं शैव धर्म के मध्य समन्वय स्थापित हुआ ईश्वर भक्ति को महत्व दिया गया। तत्कालीन महत्वपूर्ण संप्रदाय के रूप में वैष्णव एवं शैव संप्रदाय प्रचलन में थे। 

वैष्णव धर्म:-

वैष्णव धर्म गुप्त काल में अपने चरणों पर था तथा अवतारवाद वैष्णव धर्म का प्रधान अंग था। 

यह गुप्त शासकों का व्यक्तिगत धर्म था। अनेक गुप्त राजाओं ने परम भागवत की उपाधि धारण की। 

राजाओं ने अपनी राज आज्ञाएं गरुड़ध्वज से अंकित करवाई। 

चंद्रगुप्त द्वितीय एवं समुद्रगुप्त द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरुड़ की आकृति खुद ही मिली है।  

इसके अतिरिक्त वैष्णव धर्म के कुछ अन्य चिन्ह, जैसे:- शंख, चक्र, गदा, पद्म, लक्ष्मी का अंकन भी गुप्तकालीन सिक्कों पर मिलता है। 

समुद्रगुप्त के सिक्के

चन्द्रगुप्त-II के सिक्के









गुप्तकालीन महत्वपूर्ण अभिलेख स्कंदगुप्त का जूनागढ़ एवं बुधगुप्त का एरण अभिलेख स्तुति से प्रारंभ हुआ है। 

चक्रपाली का नाम के गुप्तकालीन कर्मचारी ने विष्णु के एक मंदिर का निर्माण करवाया था। 

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने विष्णुपद पर्वत के शिखर पर विष्णु ध्वज की स्थापना की। 

गुप्तकालीन कुछ अभिलेखों ने विष्णु को मधुसूदन कहा गया है। 


चन्द्रगुप्त-द्वितीय विक्रमादित्य से सम्बन्धित मत्वपूर्ण तथ्य

स्कंदगुप्त से सम्बन्धित मत्वपूर्ण तथ्य

Daily Current-Affairs

Daily Current-Affairs

शैव धर्म:- 

गुप्त राजाओं की धार्मिक सहिष्णुता की भावना के कारण ही शैव धर्म का विकास इस काल में हुआ। जबकि गुप्तों का व्यक्तिगत धर्म वैष्णव धर्म था। 

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का सेनापति वीरसेन प्रकांड शैव विद्वान था। उसने उदयगिरी पर्वत के अंदर शैवों के निवास के लिए गुफा का निर्माण करवाया था।  

गुप्त काल में भगवान शिव की मूर्तियां मानवी आकार एवं लिंग के रूप में बनाएं। शिव के अर्धनारेश्वर रूप की कल्पना एवं शिव तथा पार्वती की एक साथ मूर्तियों का निर्माण सर्वप्रथम इसी काल में हुआ। 

अर्धनारेश्वर 

अर्धनारेश्वर








शैव एवं वैष्णव धर्म के समन्वय को दर्शाने वाले भगवान हरिहर की मूर्तियों का निर्माण गुप्त काल में ही हुआ। 

हरिहर की मूर्ति

हरिहर की मूर्ति








त्रिमूर्ति पूजा के अंतर्गत इस समय ब्रह्मा विष्णु महेश की पूजा आरंभ हुए। 

गुप्तों के समय में मथुरा में महेश्वर नाम का शिव संप्रदाय निवास कर रहा था 

कालिदास के मेघदूत के वर्णन में उज्जयिनी में एक महाकाल के मंदिर का वर्णन है.

शैव धर्म का एक और अनुयाई पृथ्वीषेण जो कुमारगुप्त प्रथम का सेनापति था ने करमदण्डा नामक स्थान पर एक शिव की प्रतिमा स्थापित की। 

सामंत महाराज हस्तिन के खोह अभिलेख में नमो महादेव का उल्लेख है। 

वामन पुराण के वर्णन के अनुसार गुप्त काल में चार शैव संप्रदायों का वर्णन है: शैवपाशुपत, कापालिक, कालामुंख।

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि गुप्त काल में वैष्णव धर्म के सामने शैव धर्म की अवहेलना नहीं की गई।

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कुमारगुप्त महेंद्रादित्य के विषय में मत्वपूर्ण जानकारी!!

Daily Current-Affairs

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सूर्य पूजा:-

गुप्त काल में सूर्योपासक लोगों का भी संप्रदाय था। 

विक्रम संवत 529 के मंदसौर शिलालेख के प्रारंभिक कुछ श्लोकों में सूर्य भगवान की स्तुति की गई है। 

सूर्य देव


बुलंदशहर जिले के माडास्यात नामक स्थल पर सूर्य मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। 

मिहिरकुल के ग्वालियर अभिलेख से मातृचेट नामक नागरिक द्वारा ग्वालियर के पर्वत श्रृंग पर एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर बनवाने के साक्ष्य मिले हैं। 



बौद्ध धर्म:- 

यद्यपि गुप्त शासकों ने इस धर्म को अपना संरक्षण प्रदान नहीं किया, फिर भी यह धर्म विकसित हुआ। 

इनके समय में बौद्ध धर्म के मुख्य केंद्र बन गया मथुरा, कौशांबी एवं सारनाथ। 

गुप्तों के समय में ही प्रसिद्ध बौद्ध विहार नालंदा की स्थापना की गई। 

नालंदा विहार


सांची के एक लेख के अनुसार चंद्रगुप्त द्वितीय ने किसी आम्रकद्रका नाम के बौद्ध धर्म के अनुयाई को अपने राज्य में ऊंचे पद पर नियुक्त किया था। 

गुप्तकाल के प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य वसुबंधु, असंग एवं दिंगनाथ थे। 

इन आचार्यों ने अपने विद्वता के द्वारा भारतीय ज्ञान के विकास में सहयोग दिया। 

चीनी यात्री फाह्यान के अनुसार गुप्त काल में बौद्ध धर्म अपने स्वाभाविक रूप से विकसित हो रहा था। 

बौद्ध धर्म की महायान शाखा के अंतर्गत माध्यमिक एवं योगाचार संप्रदाय का विकास हुआ 

इसमें योगाचार संप्रदाय गुप्तों के समय काफी प्रचलित था। 

गुप्त काल में ही आर्यदेव ने चतुश्शतक एवं असंग ने महायान संग्रह, योगाचार भूमिशास्त्र तथा महायान सूत्रालंकार जैसे ग्रंथ की रचना की। 


गुप्तकालीन स्थापत्य कला!!

Daily Current-Affairs

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जैन धर्म:- 

गुप्त काल में जैन धर्म का भी विकास हुआ। 

गुप्तों के समय में ही मथुरा में (313 ई.) एवं वल्लभी में (553 ई.) में जैन सभा आयोजित की गई। 

इस समय मूर्तियों के निर्माण के अंतर्गत महावीर एवं अन्य तीर्थंकर की सीधी सीधी खड़ी हुई एवं पालकी मारकर बैठी हुई मूर्तियां निर्मित की गई। 

गुप्त काल में जैन धर्म मध्यमवर्गीय लोगों एवं व्यापारियों में खूब प्रचलित था। 

कदंब एवं गंग राजाओं ने इस धर्म को संरक्षण प्रदान किया। 

गुप्तों के समय जैन धर्म मगध से लेकर कलिंग, मथुरा, उदयगिरी, तमिलनाडु तक फैला था। 

षड्दर्शन:- 

सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व एवं उत्तर मीमांसा (वेदांत) की महत्वपूर्ण कृतियों की रचना गुप्त युग में ही हुई। 






आर्यों के विजय होने के कारण

-:आर्यों के विजय होने के कारण:-   आर्यों के विजय होने के निम्नलिखित कारण रहा:-                      1)  घोड़े चालित रथ,                      ...